उस दिन वे नियमानुसार प्रात:काल रामगिरी
गए ही नहीं. जाने की अनुमति मिलने के बाद उनका मन अधिक आतुर हो गया था. कब उज्जयिनी
जाकर मधुवंती से मिलेंगे, यह अधीरता बढ़ती जा रही थी. उज्जयिनी में रहते हुए वे प्रतिदिन उसके यहाँ जाते
भी नहीं थे, परन्तु जाने की संभावना तो थी. प्रतिदिन मधुवंती उनके साथ रहे, यह अधीरता बढ़ने लगी, वे अतीव उत्कंठा से उससे मिलने की राह देख रहे थे.
कल रात को ऐसी ही आई मधुवंती - कल्पना में. रात काल्पनिक श्रृंगार में बीत
गई. प्रात:काल हो गई फिर भी वह जाने का नाम नहीं ले रही थी. आखिर मध्याह्न में वे
रामगिरी पहुंचे. तनमन के कण-कण में मधुवंती अंकित हो गई थी.
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