Thursday, 10 November 2022

Shubhangi - 17

 मधुवंती, वैदिक वाङ्मय में संहिताओं का अध्ययन करने के लिए ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद – इन ग्रंथों का अध्ययन करना होता है. ‘ब्राह्मणग्रंथ में प्रार्थना तथा यज्ञविधि का अर्थ स्पष्ट दिया गया है. अरण्यों में वास करने वाले ऋषि-मुनियों द्वारा रचित ‘आरण्यक में प्रस्तुत जीव, ईश्वर, विश्व के सन्दर्भ में सुन्दर विचार अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं. ‘उपनिषद् गुरू द्वारा शिष्य को एकांत में बताये हुए ज्ञान का महाकोष ही है.”

कालिदास मधुवंती को बता रहे थे. संस्कृत वाङ्मय के वेद कालिदास को प्रिय थे. वे अनेक शास्त्रों के अभ्यासक थे, फिर भी वैदिक काल में ज्ञात-अज्ञात ऋषियों द्वारा लिखित वेद मानवी जीवन की आचार-विचार संहिता ही है, ऐसा उनका मत था. इसीलिये उन्होंने कहा,

“काल में परिवर्तन हुए. युग बीते. राजसत्ताएँ परिवर्तित हुईं. अनेक आक्रमण हुए, अखंड भारत का स्वप्न देखते हुए अनेक राज्य लुप्त भी हो गए. शक, हूण, यवन आये. अपनी-अपनी संस्कृति लेकर आये. संस्कृति पर, सांस्कृतिक मूल्यों पर भी आक्रमण हुए. परन्तु, मधुवंती हर काल पर अपनी शाश्वत मुद्रा की छाप छोड़ने वाली वैदिक संस्कृति एवँ उसके चिरंतन मूल्य शाश्वत रहे.

मधुवंती सुन रही थी. मध्याह्नोपरांत कालिदास उसके रंगमहल में आये थे. कालिदास के दर्शन होने के पश्चात उसने किसी को भी अपने रंगमहल में प्रवेश नहीं दिया था. जब इस सत्य का ज्ञान कालिदास को हुआ, तो उनका मन भर आया. कालिदास आयें, यह उसका स्वप्न था, जो सत्य हो गया था. उसकी ज्ञान क्षुधा भी सहज ही तृप्त हो रही थी. विषय चाहे जो भी हो, जब कालिदास उदाहरणों सहित अस्खलित और स्पष्ट वाणी में बोलने लगते, तो मधुवंती उनके मुख की ओर देखते हुए मन ही मन कहती, ‘इतने स्वरूपसुन्दर, स्वनामधन्य विद्वान पंडित ने विवाह क्यों नहीं किया होगा? और आज भी करना संभव नहीं.’ मगर उनसे पूछने का साहस उसने कभी किया नहीं.

“मधुवंती, ऋग्वेद वैदिक काल का प्रथम ग्रन्थ है. उसमें १०५५२ ऋचाएं हैं. अनेक ऋचाएं मिलकर एक सूक्त और अनेक सूक्त मिलकर एक अनुवाक बनाता है. ऋग्वेद में १०२८ सूक्त हैं. ऋषियों के नाम अज्ञात हैं. उनका दस मंडलों में विभाजन किया गया है. २ से ७ क्रमाकं के मंडल अत्यंत प्राचीन हैं. गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्री, भारद्वाज और वसिष्ठ, ये कुछ सूक्त मंडलों के द्रष्टा हैं. आठवें मंडल में कण्व तथा अंगिरस – ये पश्चात के सूक्त मंडलों के संग्रहकर्ता हैं. फिर भी अनेक सूक्तों के बारे में कुछ कहना संभव नहीं है.”

“आश्चर्य है, उस काल में भी इतने ऋषि काव्य रचना करते थे!”

“उससे भी अधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि उस काल में भी मनुष्य के सुख के लिए, संतति, समृद्धि के लिए, कृषिविषयक, पर्जन्य विषयक, गोधनवृद्धि, दीर्घ आयुष्य के लिए प्रार्थनाएँ की गई हैं. इनमें युद्ध का, साम्राज्य का, प्रादेशिक  विस्तार का, सभा, समिति, न्याय संस्था, समाज के आर्थिक जीवन, धार्मिक धोरण का भी विचार किया गया है.”

“और आयुर्वेद में?”

“यज्ञ विधि के मंत्र, उपचार पद्धति, इन यज्ञों का फलित बताया गया है. यजुर्वेद चालीस अध्यायों में समाया हुआ है.”

“आपको कौन सा वेद सर्वाधिक प्रिय है, आर्य?

“ ऋग्वेद तथा सामवेद. सामवेद में ऋग्वेद की अनेक ऋचाएं हैं. ७५ ऋचाएं स्वतन्त्र हैं. उसमें भारतीय संगीत का मूल प्रवाह है. सामवेद संगीत की गंगोत्री है. यद्यपि हमें संगीत के कारण सामवेद प्रिय है, फिर भी अथर्ववेद मनुष्य के अर्थविकास की आत्मा है.”

“इतने प्राचीन काल में भी अर्थकारण का विचार किया गया, आर्य?

“निःसंदेह. जब से मनुष्य संघटित रहने लगा, आचार-विचार की नैतिक संहिता उत्पन्न हुई. क्षुधा और तृष्णा का, देह का, जीवित रहने का, समाज-राष्ट्र का विचार आया. इसमें सुख का बाह्य साधन – अर्थ – सम्मिलित हो गया. आदान-प्रदान, क्रय-विक्रय जैसे विषयों पर भी विस्तार पूर्वक लिखा गया. और अथर्ववेद का एक तृतीयांश ऋग्वेद से लिया गया है, फिर भी अथर्ववेद के अनेक सूक्तों से अनेक शास्त्रों का उद्गम होता है. रोग प्रतिकार-आरोग्य संबंधी सूक्तों से आयुर्वेद का, अन्य सूक्तों से अर्थशास्त्र का, तत्वज्ञान का भी विचार प्रवर्तित होता है.”

कालिदास बोलते-बोलते रुक गए. मधुवंती उनकी और देख रही है, ऐसा आभास हुआ.

“इतना क्या देख रही हो, मधुवंती?

“आप ही को देख रही हूँ.”   

“आज प्रथम बार देख रही हो क्या?

“शायद हाँ. क्योंकि आज प्रथम बार आपके भाल पर आये हुए केश देख रही हूँ. आपके मुख मंडल की शोभा बढाने वाले ये कृष्णकुंतल. इसे क्या उपमा देंगे, कविराज?”

“इसका अर्थ इस क्षण तक का हमारा प्रवचन क्या सिर्फ हमारे लिए ही था? सखे, मधुवंती, जिसकी कोइ उपमा नहीं, ऐसी तुम्हारी प्रीती हमें प्राप्त हुई. हम धन्य हो गए, कृतार्थ हो गए, प्रिये.”

उन्होंने उसका कोमल हाथ अपने हाथों में लिया. उनके मन का मेघ भर आया था. अनजाने में ही सावन-भादों नेत्रों से बरस रहे थे. मधुवंती ने उनका ऐसा भाव विह्वल रूप नहीं देखा था, उसने उनके मुख पर हाथ फेरा, और कालिदास स्वयँ को रोक न सके. उन्होंने उसे दृढ़ आलिंगन में बाँध लिया. उनकी सुदृढ़ काया थरथरा रही थी. अब मधुवंती के लिए भावनाओं के महाप्रलय को रोकना असंभव था.

 

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