Sunday, 27 November 2022

Shubhangi - 24

 

“मधुवंती, अगले सप्ताह हम काश्मीर के लिए प्रयाण करने वाले हैं. शिवपार्वती को तुम्हारी इच्छा बताएंगे. तुम्हें मालूम है, मधुवंती, श्मशान वैराग्य एवँ कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले शिवशंकर का विवाह कहाँ हुआ था? वह हरिद्वार के समीप स्थित हिमराज की कन्या थीं. कनखल में उनका विवाह हुआ. और कैलास में निवास करने वाले भूतनाथ, गणनाथ – ऐसे शिवशंकर का हिमालय का परिसर अत्यंत रमणीय, नितान्त एकाकी प्रदेश - वहाँ से आये थे शिवशंकर.”

“कितना अद्भुत्...कितना अगम्य है हिमालय का प्रदेश.”

उन्होंने जान लिया कि वह मन से उस परिसर में पहुँच गई है. उसके कंधे पर हाथ रखकर वे बोले,

“देवी मधुवंती, उज्जयिनी नगरी में वापस आईये. हम क्षिप्रा तट की ओर जा रहे हैं. अरुण-रथ पूर्व-क्षितिज पर आने के संकेत दिखाई दे रहे हैं. हमें निकलना होगा.” उसने बिना कुछ कहे उनके वस्त्र दिए. सुबह-सुबह अचानक कृष्ण मेघ आकर सृष्टि को जल से सराबोर कर दे, वैसे उसके नेत्र भर आये थे.

“हम वापस आयेगे, मधुवंती! तुम्हारे बिना हम...”

वे मौन हो गए. द्वार से बाहर पैर रखते हुए बोले,

“तब तक भगवद्गीता का अर्थ भोजपत्र पर लिखना. तुम भाष्यकार हो. वीणावादिनी, मधुवंती, तुम जीवन की संगीतकार हो. जिसने तुम्हें यह सब कुछ दिया, अपने उन श्रीकृष्ण का स्मरण करो. भगवद्गीता का पठन करते हुए तुम हमें भी याद नहीं करोगी. उसके विश्वरूप में स्वयँ को भी भूल जाओगी.”

उसने मौन सहमति दी. वे बाहर निकले. उगती हुई सुनहरी सुबह को कृष्ण मेघों ने आच्छादित कर लिया और नेत्रों से कपोलों तक अश्रुधाराएँ बहती रहीं.

उसने उनके अस्पष्ट पदचिह्नों पर मस्तक रखा और मन के आकाश को रिक्त किया.

***

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