परिशिष्ट
सम्राट चन्द्रगुप्त (विक्रमादित्य) का
नवरत्न दरबार
· महाकवि कालिदास – नाटककार. कवि. अनेक शास्त्रों
के अभ्यासक
· धन्वन्तरी – रोगनिदान, उपचार. सेना में वैद्यकीय सेवा.
· क्षपणक – जैन साधु, सेना में गुप्तचर के रूप में कार्य.
· शंकू – विद्वान, ज्योतिष तज्ञ
· वेताल भट्ट – तंत्र विद्या, अघोरी विद्या के जानकार, सुसंवाद में निष्णात
· घटखर्पर – काव्य में यमक के प्रयोग में
सर्वश्रेष्ठ
· वररुचि – विद्वान, उत्तम निरीक्षक
· अमर सिंह – कवि, लेखक, उत्तम वक्ता
· वराह मिहिर – ज्योतिष के प्रकांड पंडित
नवरत्नों के अपने-अपने विशिष्ठ लिखित ग्रन्थ
हैं. कवि कालिदास के ग्रन्थ हैं – ‘ऋतूसंहार’, ‘मेघदूतम्’, ‘कुमारसंभवम्’, ‘रघुवंशम्’, ‘मालविकाग्निमित्र’, ‘विक्रमोर्वशीय’ ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’.
· ‘ऋतूसंहार’ – छः ऋतुओं का वर्णन है – काव्य.
· ‘मेघदूतम्’ – काल्पनिक होते हुए भी वास्तविक जीवन
का विरही रूप.
· ‘कुमारसंभवम्’ – शिव पार्वती और कार्तिकेय के
जन्म की कथा.
· ‘रघुवंशम्’ – रघुकुल के २९ राजाओं की पराक्रम
गाथा है.
· ‘मालविकाग्निमित्र’ – नाटक. मालविका और
अग्निमित्र के विवाह की कथा है.
· ‘विक्रमोर्वशीय’- विक्रम और अप्सरा ऊर्वशी की प्रीती कथा है.
· ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’- राजा दुष्यंत और शकुन्तला
की कथा.
रघुवंश
की और गुप्त वंश की मूल राजधानी साकेत – अयोध्या थी. और रघु राजा के ही समान
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रशासन उत्तम था.
· सम्राट चन्द्रगुप्त ने सभी कलागुणों को,
शास्त्रों को आश्रय दिया था जिससे साहित्य, संगीत, कला के क्षेत्र में एक नया पर्व आरंभ हुआ.
· विक्रम संवत्त् – यह काल गणना सम्राट चन्द्रगुप्त
ने आरंभ की.
· मंदिरों, स्तूपों, धर्मशालाओं,
चैत्यगृहों का निर्माण किया.
· व्यापार – आयात निर्यात अपनी चरम सीमा पर था.
भडोच, मंगलूर,
शूर्पारिक, कल्याण, चोल, जयगड़ व्यापारी जल मार्ग थे.
सूती,
रेशमी कपड़ों का, मसालों, हाथीदांत, दवाइयां, चन्दन आदि
का निर्यात किया जाता था. आयात की अपेक्षा निर्यात अधिक होने से भारत संपन्न था.
व्यापारिक और व्यावसायिक संगठन सबल थे.
नवरत्नों के अतिरिक्त मंत्रीमंडल के
अन्य सदस्य
· दंडपाशिक – पुलिस यंत्रणा, दण्ड देने वाला, सुरक्षा करने वाला.
· दण्डपाशाधिकारी – सुरक्षा अधिकारी.
·
गुप्तचर
विभाग
· महासेनाधिपति – सीमावर्ती प्रदेश
का सेना प्रमुख.
·
महादण्डनायक - महासेनाधिपति के साथ-साथ कार्य करने वाला.
· अश्वपति
– ऊँट, अश्व, हाथी, पैदल सेना का प्रमुख.
· रणभांडारिक – सेना को अन्न, शास्त्र, आवश्यक वस्तुओं की
आपूर्ति करने वाला.
· महाबलाधिकृत – लश्कर की छावनी, व्यूहराचानाकार
· महासंधिविग्रहिक
– परराष्ट्रमंत्री, राजदूत.
· विनयस्थितिस्थापक – सामाजिक शान्ति
बनाए रखने वाला.
· महाभण्डाराधिकृत – अन्न की आपूर्ति
करने वाला मंत्री.
· महापक्षपटलिक – न्याय व्यवस्था में
परिवर्तन की अनुशंसा करने वाला अधिकारी.
· सर्वोध्यक्ष – सभी पर नियंत्रण
करने वाला अधिकारी.
· राजस्व
अधिकारी और महामंत्री – कोषागार अधिकारी.
गुप्त वंश
· पुष्प
गुप्त – चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में उत्तर प्रांत का प्रांताधिकारी ई.स. २७५ से
३००
· श्रीगुप्त
– कुशाण साम्राज्य के पतन काला में उत्तर प्रांत में स्वघोषित राजा. ई,स, ३०० से ३१८
· महाराज
घटोत्कच – श्रीगुप्त के पश्चात् उसके द्वारा स्थापित राज्य का राजा. उसने स्वयँ को
‘महाराज’ की
उपाधि दी.
· महाधिराज
चन्द्रगुप्त – ई,स, ३१८ से ३२८. महत्वपूर्ण कार्य
पाटलीपुत्र नगर और मगध राज्य में. अनेक राज्यों को जीतने के बाद उसने विजयोत्सव
करके गुप्त संवत् आरम्भ किया. लिच्छवी गणराज्य की राजकन्या से विवाह और साम्राज्य
विस्तार. पाटलीपुत्र को राजधानी बनाया.
· कुछ
काल तक काचगुप्त ने राज्य किया.
· समुद्रगुप्त
– ई.स. ३७५ से ३८४. यह अंतर्गत कलह का समय रहा.
· चन्द्रगुप्त
द्वितीय (विक्रमादित्य) – ई.स. ३८४ से ४१४ . कालिदास विक्रमादित्य के दरबार में
थे. इस कालखंड में भारतीय कला,
संस्कृति,
वेदविद्या, यज्ञ
संस्कृति का सर्वाधिक उत्कर्ष हुआ. भारत एकसंघ हुआ. चारों दिशाओं में साम्राज्य
विस्तार हुआ.
· कुमारगुप्त
· स्कन्दगुप्त
· पुरुगुप्त
· नरसिंह
· कुमारगुप्त
द्वितीय
· बुधगुप्त
· भानुगुप्त - उसके पश्चात् अनेक राजा हुए. परन्तु
चन्द्रगुप्त (विक्रमादित्य) के काल में वाकाटक वंश से जो संबंध थे वे बिगड़ने लगे.
वाकाटकों ने गुप्त वंश को समाप्त करने के लिए आक्रमण आरम्भ किये. गुप्त वंश लगभग
४०० वर्ष रहा.
गुप्त साम्राज्य
का विस्तार
· गुप्त
साम्राज्य का उदय – कोसल, मगध, गंगा
किनारे का प्रदेश.
· श्रीगुप्त
– इनका उल्लेख इत्सिंग नामक चीनी यात्री ने मगध के राजा के रूप में किया है.
· अलाहाबाद, अयोध्या, दक्षिण बिहार का प्रदेश श्रीगुप्त के
पास था. लिच्छवी वंश से संबंध स्थापित करके उन्होंने अपने सिक्के बनाए. गुप्त शक
संवत्सर इन्हीं से आरम्भ हुआ.
· चन्द्रगुप्त
(प्रथम) – शिलालेख में जानकारी दी गई है. उत्तर की और नागसत्ता, पाटलिपुत्र राजधानी, दक्षिण में वाकाटकों से युद्ध, कृष्णा नदी (आन्ध्र प्रदेश) तक
साम्राज्य विस्तार, पूर्व – बंगाल का समुद्र किनारा, दवाक, कामरूप (आसाम), नेपाल, कुमाऊँ, कांगरा, गढ़वाल, यौधेय, मद्रक (सियालकोट), आभीर (झांसी),
सनाकानिक (भिलसा – भोपाल). अर्जुनायन (भरतपुर), मालव, राजपूताना, अश्वमेध यज्ञ किया.
· सम्राट समुद्रगुप्त – दक्षिण की ओर के ग्यारह
राज्य,
आर्यावर्त (सप्तसिंधु और काश्मीर) के नौ राज्य और कुछ अन्य राज्य, अरण्यक प्रदेश, सीमा पर स्थित राज्य और गणराज्य ऐसा
विशाल भूप्रदेश अपने साम्राज्य तले लाये. गुप्तवंश के सुवर्णकाल का आरंभ
समुद्रगुप्त ने किया.
· चन्द्रगुप्त
(द्वितीय) – ज्येष्ठ बंधु रामगुप्त के पाँच वर्षों के राज्य शासन के बाद
चन्द्रगुप्त (विक्रमादित्य) का कालखंड आरंभ होता है. विक्रमादित्य के शासनकाल में
साम्राज्य का और अधिक विस्तार होकर लगभग सारे भारत में सार्वभौम-एकछत्र
साम्राज्य का निर्माण हुआ. शक-छत्रप, वाकाटक – इन प्रमुख सत्ता स्थानों पर अधिकार
किया. मालवा,
गुजरात जीतकर ‘शकारि’ की उपाधि धारण की. समुद्री व्यापार का विकास पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण साम्राज्य प्रस्थापित. राजधानी पाटलिपुत्र से
उज्जयिनी ले गए. उनके दरबार में सर्वधर्म समभाव, शिष्टाचार, स्वागत, अपनापन था फिर भी वैष्णव धर्म पर उनकी
प्रगाढ़ श्रद्धा थी.
· इनके
पश्चात कुमारगुप्त,
स्कंदगुप्त का राज्यशासन था.
गुप्त काल – भारत का स्वर्ण काल – ईस्वी सन् 318 से 500 तक .
गुप्त वंश में हुए प्रमुख राजाओं के
नाम :
· श्रीगुप्त
· घटोत्कच
· चन्द्रगुप्त
प्रथम (ई.स. ३१८ से ३३५ तक) यहाँ से गुप्त साम्राज्य का स्वर्ण युग आरंभ होता है.
गुप्त शक संवत्सर भी यहीं से आरम्भ हुआ.
· समुद्रगुप्त
– सर्वश्रेष्ठ राज्य विस्तारक सम्राट. राज्यकाल चालीस वर्षों का. ई. स.३३५ से ३७५
तक/
· चन्द्रगुप्त
द्वितीय – अर्थात् देवगुप्त,
देवश्री,
देवराज,
विक्रमादित्य इन नामों से परिचित . इनसे पूर्व श्री रामगुप्त ने पाँच वर्ष राज्य
किया था. चन्द्रगुप्त द्वितीय का राज्यकाल था ई,स, ३८० से ४१३ तक.
· चीनी
यात्री फाह्यान सम्राट चन्द्रगुप्त के शासन काल में भारत आया था, ई.स. ४०५ से ४११ के बीच.
· कुमारगुप्त
(प्रथम) महेंद्रादित्य ई.स. ४१५ से ४५५ तक.
सम्राट
समुद्रगुप्त का साम्राज्य
(इस साम्राज्य
को सुरक्षित रखते हुए सम्राट चन्द्रगुप्त ने अन्य राज्य भी इसमें जोड़े.)
नागराज्य
1.
अहिच्छत्र -अच्युतनाग
2.
मथुरा – नागसेन
3.
पद्मावती – गणपती नाग
इनके अतिरिक्त अन्य छः राज्य भी जोड़े:
1.
पश्चिम बंगाल – बंगभूमि का चंद्रदेव
2.
रुद्रदेव
3.
मातिल
4.
नागदत्त
5.
नंदीन
6.
बलवर्मन
ये राज्य कहाँ के हैं इसके बारे में
इतिहासकार साशंक हैं.
दक्षिणपथ के राज्य
1. राजा महेंद्र – कोसल – बिलासपुर, रायपुर, संबलपुर
2. व्याघ्रराज – महाकान्तार – गोंडवन
3. मंतराज – कोरल – सोनापुर जिला.
4. महेंद्रगिरी – पिष्टपुर – आंध्रप्रदेश का पिष्टपुर ( संभवत:
आज का पिठापुरम्)
5. स्वामीदल – कोहूर – गंजम जिला
6. दमन – एरण्डपल्ल – विजगापट्टम
7. विष्णुगोप – कांची – कांचीपुरम
8. नीलराज – अवमुक्त – गोदापुर जिला
9. हस्तिवर्मन – वैमी – ऐलोर जिला
10.
कुबेर – देवरावट –
विजगापट्टम
11.
धनञ्जय - कुष्टलपुर – तमिलनाडु का अर्काट
12.
उग्रसेन – पाल्लका – नैलोर
पूर्व-पश्चिम भारत में समुद्रगुप्त की सीमा पर
पाँच राज्य थे:
· कामरूप
– आसाम
· नेपाल
· कृतापुर-
हिमालय के निकट का राज्य
· समतट –
भारत का अति पूर्व प्रदेश
· दवाक –
आसाम का प्रदेश
इसके अतिरिक्त बारह अन्य राज्य जीतकर
उन्हें संबंधित राजाओं को वापस लौटाकर उन्हें मांडलिकत्व प्रदान किया. इसके
अतिरिक्त सात अन्य छोटे राज्य जीतकर उन्हें कुछ शर्तों पर उन्हीं राजाओं को वापस
लौटा दिया. इस पूरे साम्राज्य पर ज्येष्ठ बन्धु श्री रामगुप्त के बाद चन्द्रगुप्त
विक्रमादित्य ने अपनी सत्ता स्थापित की.
सम्राट चन्द्रगुप्त के सिंहासन पर आरूढ़
होने से पूर्व श्री रामगुप्त ने पाँच वर्षों तक राज्य किया, जिसके दौरान अराजकता फ़ैल गई. सम्राट
चन्द्रगुप्त ने इसे व्यवस्थित करके सुशासन स्थापित किया.
सम्राट समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त के
काल को इतिहास का स्वर्ण काल कहा जाता है.
· सम्राट
चन्द्रगुप्त के राज्य विस्तार का सिद्धांत था – वैवाहिक संबंधों से साम्राज्य
विस्तार.
· उन्होंने
नागवंशीय कुबेरनागा से विवाह किया. दक्षिण के प्रबल सत्ताधीश वाकाटक वंश में अपनी
कन्या दी.
· दक्षिण
के कदंब वंश की कन्या को अपनी पुत्रवधू के रूप में लाये.
· शकों
का पूरी तरह से बंदोबस्त कर दिया. शक सम्राट रुद्रसिंह का पराभव करके सिन्धु पार
करके गंधार (अफगानिस्तान) तक साम्राज्य विस्तार किया. तीन शतकों से चले आ रहे शक
साम्राज्य को नष्ट कर दिया.
· रोमन साम्राज्य
से व्यापारिक संबंध बनाए.
· कुषाणों
का अंत
· हूणों
का बंदोबस्त
· बंगाल
पर चढ़ाई
· कामरूप
में सुयोग्य शासन की स्थापना
· पाटलिपुत्र, उज्जयिनी, विदिशा – इन राज्यों का सर्वांगीण
विकास. विदिशा और उज्जयिनी को पहले उपराजधानी का दर्जा, तो पाटलिपुत्र राजधानी थी. बाद में
उज्जयिनी को राजधानी बनाया.
· चन्द्रगुप्त
ने भी समुद्रगुप्त की भांति सिक्के चलाये, शिलालेखों पर उपाधियाँ और अपने कार्यों को
उत्कीर्ण किया. उनकी उपाधियाँ थी:
उज्जैनाधिपति, देवराज, देवगुप्त, देवश्री, नरेन्द्रदेव, विक्रमसिंह, विक्रमांक, सिंहविक्रम, सिंहचन्द्र, परम भागवत, महाराजा, सम्राट महाराजाधिराज. इतनी अधिक
उपाधियाँ किसी सम्राट के पास नहीं थीं.
उनके शासन काल में प्रमुख विभाग थे:
· राजस्व
विभाग – गुप्त काल में अठारह प्रकार के कर थे.
· न्याय
विभाग – चार श्रेणियां – कुल,
श्रेणी, गण,
राजकीय न्यायालय.
· सुरक्षा
विभाग
· सेना
विभाग
· प्रांतीय
प्रशासन
· प्रान्तों
का अंतर्गत प्रशासन ‘विषय’
कहलाता था.
· नगर
और ग्राम प्रशासन
गुप्त काल में अनेक विषयों पर मुक्त
व्यवहार होता था;
·
वर्ण व्यवस्था
·
जाति संस्था
·
एकत्र कुटुम्ब पद्धति
·
दास प्रथा
·
स्त्रियों का दर्जा
·
गणिकाओं, दासियों का सम्मान
·
अन्न. वस्त्र, आवास, अलंकार, वेशभूषा, केशभूषा, मनोरंजन, उत्सव
·
शिक्षण पद्धति
·
निवास, नगर रचना, वास्तु शास्त्र
हर प्रकार से सुशासन और सुव्यवस्था
होने से इसे एकसंघ भारत का स्वर्ण काल माना जाता है.
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